बीते जमाने थे वो
जब इश्क किया करते थे
मै चुप तुमको देखती और
तुम कहते मैं सुनती।
रात चांदनी वो, हवाएं ठंडी
स्वप्न सागर में खो जाते
लहरों की भांति तट पर आते
कितना पाक प्रेम था वो
जब तुम कहते मैं सुनती।
सर्द हवा ना सर्द लगे
ग्रीष्म ऋतु जब बसंत लगे
इन्हीं ख्यालों में गुम रहते
अपूर्व प्रेम के सागर में डूब गए
लिए गोद में हमको वो
जब तुम कहते मैं सुनती।
धीमी महक फूलों की आती
चपला अपनी चमक दिखाती
वात वेग से जब चले
नीले आसमां तले
राजगीर की भांति भटके
चित्त चंचल खोकर
उन सपनों की नगरी में
जब तुम कहते मैं सुनती।।
--SONI DIMRI
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