जब नेह नयन के दर्पण में।
जब पावन पुण्य समर्पण में।।
जब मात-पिता का वंदन हो।
जब गुरुवर का अभिनन्दन हो।।
जब मां बसे हों कण कण में।
जब पिता बसे हों तन-मन में।।
परिवार का सार्थक है।
निज मन का सुखद है।।
करुणा का दीप है।
ज्ञान का प्रतीक है।।
जीवन का आधार है।
उन को ही अधिकार हैं।।
मान सम्मान की जननी है।
मनुष्य की मां प्रवृत्ति है।।
जब आंचल में छुप जाए।
तब बार-बार कर्ज याद आए।।
व्याख्या का अनुरूप हैं।
पिता की प्रवृत्ति का प्रारूप है।।
मां प्रेम का स्तोत्र है,
मां धर्म का आधार है,
मां निस्वार्थ प्यार है,
मां भगवान का यथार्थ है,
मां शब्द नहीं ब्रह्मांड है,
मां वाणी का माधुर्य है,
मां शास्त्रों का चातुर्य है,
मां एक शब्द नहीं शब्दकोश है,
मां संसार का सार,
प्रेम और करुणा का उदघोष है।
माता-पिता से प्रेम करें, रहे वह सम्मान से
जो बना ले संतुलन परिस्थिति से,
करे द्वंद्व स्वयं से और नियति से,
कायम करे वर्चस्व, अपने कृति से,
पाना देना व त्यागना सीखें संस्कृति से,
उस मानव का जग में होता उद्धार है,
जो करता अपने संस्कारों से प्यार है।
-भारमल गर्ग "साहित्य पंडित"
सांचौर,जालोर (राजस्थान)
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