सब विवशताओं से परे
हर धर्म को भी छोड़कर,
स्वयं में खोना चाहती हूँ
मैं शून्य होना चाहती हूँ ।
हर भलाई से हो के इतर
और हर बुराई छोड़कर,
कुछ न ढोना चाहती हूँ
मैं शून्य होना चाहती हूँ।
ना सुख की कोई चाह हो
ना दुख से कोई आह हो,
न हँसना न रोना चाहती हूँ
मैं शून्य होना चाहती हूँ।
पुण्य जो भी मैंने लिए
या पाप जो मैंने किये,
सबको धोना चाहती हूँ
मैं शून्य होना चाहती हूँ।
ना मुझमें कोई जान हो
ना कुछ मेरी पहचान हो,
अस्तित्व खोना चाहती हूँ
मैं शून्य होना चाहती हूँ।
मैं हूँ इक अंश-ज्योति
उस आलौकिक दीप की,
उसी में खोना चाहती हूँ
मैं शून्य होना चाहती हूँ।
--Priyanka Katare
Like this:
Like Loading...
Related