तेरे प्यार की छाँव की आस है मैं किसी धूप सा जलता फिरता हूँ दूर कर दिया तूने मुझे खुद की गर्मी से मैं किसी बर्फ़ सा हर रोज़ ही जमता हूँ बरस पाऊँ बारिश सा सावन में कभी मैं कही बादल सा आवारा फिरता हूँ सहलाती है ठंडी हवा गालों को तेरे मैं तूफ़ानों सा दरिया में उठता हूँ रात में चाँदनी बिखेरती है रोशनी चाँद की मैं अमावस सा खुद में सिमटता हूँ एक घरोंदा बने मेरा इसी चाह में किसी टूटे मकान सा मोड़ पे खड़ा रहता हूँ।। -- Sanchita Shukla

बहुत बढ़िया