ये जिन्दगी बहुत कुछ सिखाती है
गिरना तो कभी उठना सिखाती है।
वैसे तो भीड़ बहुत है दुनिया में लेकिन
चंद रिश्ते बेहद खास ये बनाती है।
नजारों से भरी दुनिया खूबसूरत है लेकिन,
लम्हा-ए-जरूरत में बदसूरत नजर आती है।
यहां हर शख्स सिर्फ अपने लिए जीता है
दूसरों की मुसीबत पर उसको हंसी आती है।
अपना पराया सिर्फ दो शब्द बनकर रह गए
असलियत लोगो की मरने पे समझ आती है।
शोहरत के पीछे इंसान खुद को भूल गए
क्योंकि यहां पैसों से इंसानियत नापी जाती है।
समझ से परे है सबकी ज़िन्दगी लेकिन
जो समझ ले तो ज़िन्दगी, ज़िन्दगी बन जाती है।
--Rehanika Kaushik
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