कामकाजी औरतें
जब भी निकलतीं हैं,
घर से बाहर
रोटी कमाने को,
वो सिर्फ रोटी ही
नहीं कमातीं,
कमातीं हैं साथ में
थोड़ा सा अपमान,
थोड़ी लालची निगाहें,
और खोती हैं जब कभी,
अपना स्वाभिमान भी ।
आँका जाता है
उनका पहनावा,
चाल- चलन और
हंसना बोलना भी।
समान प्रतिभा
होते हुए भी,
कहाँ मिल पाती है
कोई भी समानता,
कामकाजी औरतों को!
और ये कामकाजी औरतें
यूँही रोज खुद को,
खरचती रहती हैं,
बस रोटी कमाने में।
-- प्रियंका कटारे 'प्रिराज'

👌👌
Shukriya ♥️