धीरज धरो हिम्मत करो
दिन हैं विकट, तो क्या हुआ|
साहस अदम्य, रग में तेरे;
दुःख है निकट ,तो क्या हुआ||
विपदाएं आई कई
झेली कई तू याद कर ,
तब भी अचल और अडिग था
ढून्ढ लेता था, राहें नई
आज फिर क्यूँ टूटता ?
संकट नया तो क्या हुआ||
तू हौसला कर होकर निडर
औजार तू तैयार कर;
कसकर कमर रण में निकल
है तम घना, तो क्या हुआ||
प्रक्रति का द्वन्द था,
प्रतिकार तो होना ही था|
लालसाएं, थी बहुत
अन्धकार तो होना ही था||
स्वीकार कर, अब भी संभल ,
आश रख, विश्वास रख|
एक रात थी, काली घनी
भोर है, आगे अभी||
चलना सतत, मन दृढ़ कर
संकल्प और , विश्वास हो
डिगना नहीं, हटना नहीं
फिर कंटकाकीर्ण मार्ग हो||
त्याग दो, हर काज वो
जिसमे छुपा, निज स्वार्थ हो
होंगे सफल, सब कार्य तब ,
फिर शूल हैं, तो क्या हुआ||
धीरज धरो, हिम्मत करो;
दिन हैं विकट, तो क्या हुआ||
--अजीत राणा
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