मुझपे हैं इल्ज़ाम वो, जिनकी कोई बुनियाद नहीं मामला है क्या, मुद्दा क्या है, कुछ भी तो याद नहीं| बेशक, अशरफियों की चमक ने मुगालते पाले हैं यकीन ख़ुद ओ' इल्म पे है, हम भी बरबाद नहीं| भले ही हूर हैं, बाग़ में चहकती बुलबुल हैं वो फरिश्ते, बेशक ना हों, हम भी सय्याद नहीं| हसरतें नदियाँ हैं उफनती, हक़ीक़तें समन्दर है कितना भी जोश ए मौज हो,साहिल से आज़ाद नहीं| जिन्दगी पे ख़ुद से ज्यादा हक़ उन "ख़ुदा" का है नसीहत है मुफ्त की, तुमसे कोई फरियाद नहीं|| --गौरव पारीक "फागवी"
