अजीब दौर हैं दिखावटो का दौर है।
रिश्तो के नाम पर मिलावटो का दौर है।
दिल की खुबसूरती से क्या लेना देना
अभी तो नकली सजावटो का दौर है।
हर कोई गुम है जाने किस तलाश में
काम कम है, और ज्यादा थकावटो का दौर है ।
खत, कलम, स्याही, कहाँ हैं
अब ऊँगलियों से फोन मे लिखावटो का दौर हैं।
सच्चाई कहाँ दिखती हैं अब किसी चेहरे पे
झूठी खुशी, झूठी शान,
लगता है जैसे बनावटो का दौर है ।
-Seema Jhunjhunwala

बहुत सुंदर अभिव्यक्त किया है 👌🏼👌🏼