जीवन भर घनघोर घटाएं,
पग-पग पर संत्रास मिला।
निज गौरव के अन्वेषण में,
सर्वलोक उपहास मिला।।
उमर हाथ से गई फिसल अब,
आखों से आशा रूठी,
तथाकथित गुरुता, गरिमा की
माल भाल से जा छूटी,
घोर तमिस्रा की कारा में,
विधि है प्रबल प्रमाण मिला।
क्षुद्र ग्रहों को मान मिला
और चन्दा को अवमान मिला।।
जीवन भर घनघोर घटाएं,
पग-पग पर संत्रास मिला।
निज गौरव के अन्वेषण में,
सर्वलोक उपहास मिला।।
शिथिल हुआ उत्साह ह्रदय का,
क्षोभ उठ रहा मन में प्रतिपल,
कुण्ठा पर कुण्ठा की परतें,
अश्रुबिंदु झरते है अविरल,
तिक्त हुई मधु स्वप्न श्रृंखला,
चिंता को व्यापार मिला।
शून्य हुआ तप, व्यर्थ साधना
क्रंदन को आधार मिला।।
जीवन भर घनघोर घटाएं,
पग-पग पर संत्रास मिला।
निज गौरव के अन्वेषण में,
सर्वलोक उपहास मिला।
--सुमित विजयवर्गीय
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शुक्रिया कवितालय।
आपके द्वारा दिए गए ये प्रोत्साहन निश्चित ही हमारे मनोबल में आशातीत वृद्धि करेंगे।