"औरत का सफ़र"
जन्म की पहली किलकारी से
स्वर्ग की सीढ़ी तक
अहम् किरदार निभाती है
एक औरत की कहानी
सबको सीख देके जाती है
जन्म के वक्त माँ लक्ष्मी,
पापा की परी
तो माँ की लाडो बन आती है
बहन की सच्ची सहेली तो
भाई की जान बन जाती है
कटता है हर वो पल खुशी से
जब वो साथ रहती है
कभी रूठना तो कभी मनाना
वो हर दुख-सुख सहती है
फिर पराये घर का रास्ता और
अनजाना सफर तय करती है
एक घर को खुशियाँ देके
दूसरे का रुख करती है
बड़ी शिद्दत से ढल जाती है
उस नये से माहौल में
और उलझ के रह जाती है
दुनियादारी के मोल-तोल में
फिर ढोती है परिवार का भार
बिन थके बिन सांस लिए
और दब जाती है बोझ से
सबको जीत पाने की आस लिए
तभी टूट जाती हैं
रिश्तों की वो सारी डोरियाँ
और सो जाती है लम्बी नींद
सुन के न जाने कैसी लोरियाँ
उजाड़ जाती है अपनों की दुनिया
सब सुनसान कर जाती है
हरी भरी कुसुमित बगिया को
क्यों वीरान कर जाती है
क्या बखान करूँ तेरी महिमा का
तू सबसे महान है
तू बेटी है, बहन है, पत्नी है, माँ है
तू मनचाहा वरदान है
सच में शीलता, शालीनता और
सहनशीलता का अवतार है औरत
सारे जहां में ईश्ववर का
बेमिसाल उपहार है औरत
By- 'रामानंद ठाकुर'
Winner of online poetry event.
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